दुनिया के हर भोजन की जान होता मीठा. बिना चीनी के कोई मीठी चीज नही बन सकती. तो आखिर यह चीनी बनती कैसे है. गन्ने से चीनी कैसे बनाई जाती है. गन्ने से चीनी बनने की पूरी प्रक्रिया जानने के लिए यह आर्टिकल पूरा पढे.
- खेत से किसानों द्वारा ट्रेक्टर ट्रॉली मे भर कर गन्ना चीनी मिल तक लाया जाता है.
- किसान द्वारा गन्ना मिल मे देने से पहले उसका वजन किया जाता है ताकि गन्ने की कीमत का भुगतान किया जा सके.
- मिल मे लाने के बाद गन्ने से भरी ट्रॉली को एक क्रैन की मदद से अनलोडिंग स्टेशन पर खाली किया जाता है .
- अनलोडिंग स्टेशन से एक दूसरी क्रैन गन्ने को एक कनवेयर बेल्ट पर डालती है जहां से गन्ना आगे बढ़ता है.
- कनवेयर बेल्ट से होता हुआ गन्ना कृशर मशीन की तरफ आगे बढ़ता है, कृशर गन्ने को बहुत बारीक टुकड़ो मे काट देता है, इस अवस्था मे भी जूस गन्ने मे ही रहता है.
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- बारीक कटे हुए गन्ने के यह टुकड़े कनवेयर बेल्ट पर होते हुए आगे लगे रोलर की तरफ बढ़ते है, यहाँ रोलर के अत्यधिक प्रेशर से गन्ने के इन टुकड़ो से जूस निकाल जाता है.
- यहाँ गन्ना दो भागो मे अलग हो जाता है पहला होता है जूस और दूसरा होता है जूस निकालने के बाद बचा हुआ गन्ने का कचरा जिसे बगेस कहा जाता है.
- यहाँ से गन्ने का बचा हुआ बगेस अलग होकर कनवेयर बेल्ट से होते हुए बाहर चला जाता है.
- इस बगेस को भट्टी मे जला कर उसकी मदद से मिल मे मौजूद बॉयलर से बिजली बनाई जाती है. यह बगेस चीनी मिल को बिजली देने के काम आता है.
- जो बगेस बच जाता है उसे स्टोर कर लिया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर उसे बिजली बनाने के काम लिया जा सके.
- गन्ने के जूस को पम्प की मदद से पाइप से होते हुए आगे की तरफ बढ़ता है.
- जूस को एक टैंक मे स्टोर किया जाता है.
- टैंक से निकल कर जूस एक बॉयलर की तरफ बढ़ता है
- बॉयलर मे जूस को 110 डिग्री पर गरम किया जाता है, गर्म करने के बाद जूस को लगभग 3 घंटे तक ठंडा किया जाता है.
- गर्म करके ठंडा करने से जूस मे मौजूद अशुद्धियाँ जैसे बारीक कचरा मिट्टी टैंक मे नीचे बैठ जाती है. और साफ जूस ऊपर की तरफ रह जाता है.
- यह साफ जूस आगे की प्रोसैस के लिया बढ़ जाता है यहाँ जूस मे मौजूद बारीक से बारीक अशुद्धि को एक रोलर पर स्प्रे कर के उसकी की मदद से अलग कर दिया जाता है. जूस से निकालने वाले इस कचरे को महि कहा जाता है.
- महि एक कनवेयर से होते हुए बाहर निकाल जाती है, कनवेयर बेल्ट के नीचे खड़े हुए ट्रक मे भर कर इस कचरे को बाहर निकाल दिया जाता है.
- गन्ने के साफ़ जूस को बड़े बड़े 5 टैंक मे गर्म किया जाता है. गर्म से जूस यहाँ गाढ़ा होना शुरू हो जाता है और शुगर सिरप का रूप लेने लगता है. अलग अलग लेवल पर सिरप को गर्म करने से यह गाढ़ा होते हुए क्रिस्टल का रूप लेने लगता है.
- चीनी के दानों का जो चोकोर आकार होता है उसे चीनी क्रिस्टल कहा जाता है.
- सिरप जब बहुत गाढ़ा होकर क्रिस्टल का रूप लेने लगता है तब उसमे पहले से तैयार कुछ चीनी डाली जाती है जिसे नुकलियाई कहा जाता है.
- इसी पहले से बनी चीनी को कॉपी कर सिरप चीनी का रूप लेने लगता है.
- चीनी के दानों का आकार इस बात पर निर्भर करता है की सिरप को कितना गर्म किया जाता है.
- चीनी के दाने यहा से कनवेयर बेल्ट पर होते हुए आगे बढ़ते है और एक टैंक मे जाते है.
- आखरी लेवल पर चीनी के दानों से मोलासिस को अलग किया जाता है, इसके लिए चीनी को एक टैंक मे डाला जाता है जाता इसे 1200आरपीएम पर घुमाया जाता है. यहा चीनी मे गर्म भाप का स्प्रे किया जाता है.
- इस लेवल पर चीनी से मोलासिस अलग हो जाता है. यहा से निकाल कर चीनी कनवेयर बेल्ट से गुजरती है
- इस बेल्ट पर अलग अलग आकार की जाली लगी होती है जहां चीनी के दानों को आकार के हिसाब से अलग अलग किया जाता है.
- आकार के अनुसार चीनी की अलग अलग पैकिंग की जाती है.
- पैकिंग के लिए 50-50 किलो के अलग अलग बैग तैयार किए जाते है.
- चीनी का उत्पादन सरकारी नियमो के अनुसार ही किया जाता है.
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