Bhuj: The Pride of India की असली कहानी क्या है

Bhuj: The Pride of India की असली कहानी क्या है

 Bhuj: The Pride of India की असली कहानी क्या है?

 15 अगस्त पर रिलीज़ हो रही है अजय देवगन के अगली फिल्म अगली फ़िल्म Bhuj: The Pride of India पर क्या आप जानते है इस Bhuj: The Pride of India की असली कहानी क्या है. तो चलिये शुरू करते है.

 

15 अगस्त पर रिलीज़ हो रही है अजय देवगन के अगली फिल्म अगली फ़िल्म Bhuj: The Pride of India पर क्या आप जानते है इस Bhuj: The Pride of India की असली कहानी क्या है
Real Story of Bhuj: The Pride of India

Bhuj: The Pride of India की असली कहानी

ये एक सच्ची कहानी है सन् 1971 मे गुजरात के भुज मे लड़े गए भारत पाकिस्तान युद्ध की. जिसमे भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर विजय कुमार कार्निक ने अद्भुत शोर्य और वीरता का प्रदर्शन किया. पर ये युद्ध जाना जाता है एक अकेले इंसान रणछोड़ दास रबारी के लिए जो पूरी पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ा और गाँव की उन 300 महिलाओ के लिए जिन्हों ने देश की सेवा और भारतीय वायु सेना की मदद के लिए अपनी जान की भी परवाह नही की.

 
विंग कमांडर विजय कार्निक कौन थे?

भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर विजय कार्निक वायु सेना की भुज एयर बेस पर तैनात थे. विजय कार्निक के साथ यह 2 अफ़सर और 50 वायु सैनिक तैनात थे. यह एयर बेस रणनीति के लिहाज से भारतीय सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था. 8 दिसम्बर को पाकिस्तान की वायु सेना के सेबर जेट्स ने भारत के भुज एयर बेस पर हमला कर दिया. पाकिस्तान ने इस एयर बेस का पता लगा कर नेप्लम बॉम्ब का इस्तेमाल इसकी एयर पट्टी को नष्ट करने मे किया. पाकिस्तान ने यहाँ 14 नेप्लम बॉम्ब गिराए. बॉम्ब उसे अमेरिका से मिले थे जिन्हे उसने वियतनाम जंग मे भरी तबाही मचाने के लिए बनाया था. नेप्लम बॉम्ब ने भुज हवाई पट्टी को भारी नुकसान पहुचाया था. इस हवाई पट्टी को विजय कार्निक उनकी टीम अकेले नही बना सकती थी. इसके लिए उनकी मदद को आगे आई पास ही के मधापुर गाँव की 300 महिलाए. विजय कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती उन महिलाओ की सुरक्षा थी. इसके लिए इन महिलाओ को दुश्मन के हमले की दशा मे क्या करना है कहा छिपना है इसकी ट्रेनिंग दी गई.

 भुज का यह एयर बेस भारत के लिए कितना कीमती था इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है की पाकिस्तानी ने सिर्फ 14 दिन मे इसपर 35 बार हमला किया. पाकिस्तान ने इस पर 92 बॉम्ब और 22 रॉकेट दागे. सर्दियों मे भुज के इस इलाक़े का तापमान 5 डिग्री तक चला जाता था. इतनी चुनौतियों के बावजूद उन बहादुर महिलाओ ने इस हवाई पट्टी को 3 दिन के तय समय मे बना दिया. जिसपर भारतीय वायु सेना के विमान उतरे और दुश्मन को हराया. इस बहादुरी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने इन महिलाओ को 50000 रुपए का पुरुसकर दीया था. 

 

रणछोड़ दास रबारी पगी कौन थे?

 विलिंग्टन, तमिलनाडु के मिलिट्री हॉस्पिटल मे भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल सैम मानेक्सा अपनी अंतिम साँसे ले रहे थे तब उनकी जबान पर एक ही नाम था “पगी”. सैम बहादुर के मुँह से ये नाम कई बार सुनने बाद डॉक्टर ने उनसे पूछा “हू इज़ पगी” तब सैम मानेक्सा ने डॉक्टर को सुनाई अपने सबसे ख़ास दोस्त की कहानी जिसे सुनकर डॉक्टर भी हैरान रह गए.

1947 से पहले के भारत और आज के पाकिस्तान पैथापुर के गथढों गाँव मे रणछोड़ दास रबारी का जन्म हुआ था. उनका परिवार गुजरात के रण मे पशु पालन कर जीवन जीता था. भारत पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो पाकिस्तान के जुल्म उनके गाँव पर भी शुरू हो गए, जिससे उनका परिवार पाकिस्तान छोड़ कर भारत आ गया और बनासकांठा मे रहने लगा. रणछोड़ दास जब बड़े हुए तो वह भी अपने ऊँटो को लेकर रण मे पशु चराने जाते थे. इस कारण वो उस इलाके के चप्पे चप्पे वाकिफ़ थे. रणछोड़ दास के पास एक ख़ास हुनर था जिसे “पगी” कहा जाता है.  जिससे वो रेत मे बने पैरो के निशान चाहे वो इंसान के हो या जानवर के उसका सारा हाल बता सकते थे. 58 साल की उम्र जब लोग रिटायर हो जाते है उस आयु मे रणछोड़ दास रबरी के पगी के हुनर को देखकर उस समय बानसकाठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हे पुलिस विभाग मे भर्ती कर लिया और इसके लिए एक नया पद बनाया गया जिसका नाम पगी रखा गया. 540 किलोमीटर का गुजरात राज्य का पाकिस्तान से लगा बार्डर. जिसकी सुरक्षा रणछोड़ दास और उनकी पगी पुलिस के जिम्मे थी.

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध मे पाकिस्तान ने कच्छ बार्डर के पास विद्कोट पोस्ट पर कब्ज़ा कर लिया था. इस युद्ध मे भारत के 100 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे.  उस पोस्ट दुशमन से आजाद करवाने के लिए भारतीय सेना के 10000 सैनिक आगे बड़े. इसके लिए सेना को सिर्फ 3 दिन मे पोस्ट तक पहुचना था.  परन्तु कच्छ के रण मे जहा दूर दूर तक कोई पेड़ नही है जहा तक नज़र जाए सिर्फ सफ़ेद नमक की चादर बिछी है. कई किलोमीटर दूर से भी एक अकेला इंसान नजर आ जाता है वहाँ 10000 सैनिकों का बिना दुश्मन की नज़र मे आए पोस्ट तक पहुचना असंभव था. ऐसे मे रणछोड़ दास रबारी सेना की मदद के लिए आगे आए. उन्होने अपने पगी के हुनर और उस इलाके की जानकारी से भारतीय सेना के 10000 जवानों को गुप्त और सुरक्षित रास्तो से बिना दुश्मन की नज़र मे आए मंज़िल तक पहुचा दिया. रणछोड़ दास ने न सिर्फ सेना को पोस्ट तक पहुचाया बल्कि सिर्फ ऊँटो के पैरो के निशान देखकर ऊँटो की संख्या उसपर कितने आदमी बैठे है, उन ऊँटो पर कितना समान लदा है यह तक सटीक जानकारी दे दी. इससे वहाँ 1200 पाकिस्तानी सैनिको के होने का भारतीय सेना को पहले ही पता चल गया था . पगी का काम यही खत्म नही हुआ, जब युद्ध मे सेना का गोला बारूद खत्म हुआ तो पगी अपने ऊँट पर लाद कर सेना तक गोला बारूद पहुचाते थे. रणछोड़ दास ने युद्ध मे भारतीय सेना की बहुत मदद की.

जब 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ तो पाकिस्तान ने पगी सेना की मदद के लिए फिर वापस आए.

 

पगी कला क्या है?

पगी कला राजस्थान और गुजरात के पश्चिमी इलाक़े मे हुआ करती थी. इसको जानने वाले बताते है की हर जीव और इंसान के पैरो के निशान अलग अलग होते है. ये लोग रेत मे चलने वाले लोगों की सटीक पहचान बता सकते थे. अगर कोई जानकार हुआ तो उसका नाम तक भी. यदि अंजान हुआ तो वो गाँव से है या शहर से उसका कद और वजन क्या है. उसने कितना समान उठाया है ये तक भी बता सकते थे. पहले इस कला को जानने वाले इस क्षेत्र मे लगभग 850 लोग थे पर समय के साथ यह कला लुप्त हो रही है और अब पगी को जानने वाले सिर्फ 9 लोग बचे है.  

 

सैम मानेक्सा कम ही सिविलियन लोगों से मिलते थे, पर पगी से उनका रिश्ता कुछ ख़ास था. कहा जाता है की एक बार मानेक्सा ने पगी को अपने साथ खाने पर बुलाया और उसके लिए पगी को लाने के लिए उनके गाँव एक हलिकोप्टर भेजा गया. पगी के गाँव मे हलिप्कोप्टर उतरा और रणछोड़ दास को मानेक्सा का संदेश सुनाया. पगी चलने को तैयार हो गए. जैसे ही हेलीकाप्टर जमीन से ऊपर उठा रणछोड़ दास को याद आया वो अपनी पोटली तो लेना ही भूल गए. हलिकोप्टर को फिर से नीचे उतारा गया. रणछोड़ दास अपनी पोटली लेकर फिर से हेलीकाप्टर मे चड़ गए. जब उनसे पूछा गया के पोटली मे ऐसा क्या ख़ास है तो पता चला उसमे दो रोटी एक प्याज़ और एक गाठिया था. इतने भोले थे रणछोड़ दास पगी. पर इस भोलेपन के साथ उनमे साहस और देशभक्ति भी थी. जिसने असंभव को भी संभव कर दिया.  

 

2009 मे 105 साल की आयु मे उन्होने स्वेछिक रिटायरमेंट ले लिया. रणछोड़ दास पगी को राष्ट्रपति मेडल, संग्राम पदक, पुलिस पदक, समर सेवा पदक जैसे कई पुरस्कार मिले. 18 जनवरी 2014 को 112 साल की आयु मे रणछोड़ दास पगी का निधन हुआ उनके सम्मान मे बीएसएफ़ की एक चौकी का नाम रणछोड़ पोस्ट रखा गया है.

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